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स्टेट हाईवे के नाम पर मनमानी तोडफ़ोड़, व्यक्तिगत द्वेषता में आशियानों पर चला रहे पीला पंजा

चित्तौड़गढ़। दशकों पहले परमाणु नगरी रावतभाटा को ऊर्जा उत्पादन के लिए बनाया गया था बाद में इसमें एनजीटी का पेंच फंस जाने के बाद वहां के वाशिन्दों की परेशानियां और बढऩे लगी है। इन सबके बीच राजनीति ने भी लोगों की परेशानियों में तड़का लगाने का काम किया है। कभी एनजीटी के नियमों के नाम पर तो, तो कभी पट्टे नहीं होने की धौंस दिखाकर लोगों के घर, दुकान तोड़े जा रहे है। नियमों का फायदा उठाते हुए कथित लोग राजनैतिक पद और प्रभाव का फायदा उठाते हुए अपनी व्यक्तिगत द्वेषता के चलते लोगों के आशियानों पर बुलडोजर चलवाने का काम कर रहे है और नगर पालिका रावतभाटा स्वायत्त शासी संस्था न होकर लोगों की स्वार्थ पूर्ति और व्यक्तिगत द्वेषता निभाने का जरिया बन गई है।
उपखंड अधिकारी से लेकर नगर पालिका के अधिशाषी अधिकारी तक मकान तोडऩे को लेकर अनभिज्ञता जाहिर कर रहे है और प्रशासन के ही अधिकारी प्रशासन पर आरोप लगा रहे है।

ऐसा ही एक मामला स्टेट हाईवे के निर्माण को लेकर सामने आया है। जहां मनमाने तरीके से नियमों से परे जाकर लोगों के मकान तोड़े जा रहे है। हालात यह है कि सड़क चौड़ी करने के नाम पर जिन लोगों से व्यक्तिगत द्वेषता है उनके मकान और दुकान तोड़े जा रहे है। बड़ी बात यह है कि इस तोडफ़ोड के लिए कोई जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है जबकि मौके पर नगर पालिका रावतभाटा के संसाधनों का उपयोग हो रहा है। ऐसे हालातों में लोगों को परेशानियों से निजात मिलने के बजाय उनके आशियानों पर हर पल खतरा मंडरा रहा है। जिसकी सुनवाई तक नहीं हो रही है।

न वकील-न दलील, सीधी तोडफ़ोड़, जवाब देही से झाड़ा पल्ला
भारतीय संविधान में सभी को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है। अधिकारी वर्ग को भी इस बात के लिए निर्देशित किया जाता है कि बिना सुनवाई किए किसी प्रकार की तोडफ़ोड़ नहीं की जाये लेकिन रावतभाटा नगर पालिका के मामले में संविधान, न्यायपालिका और सरकार के दिशा-निर्देश तक बेमानी साबित हो रहे है। रावतभाटा क्षेत्र के रहने वाले विपिन अग्रवाल के साथ ऐसा ही हुआ है। जहां उनके घर से दूरी पर राजमार्ग निर्माण के लिए निशान चिन्हित कर दिये गये और उसके बाद निर्माण भी शुरु हो गया लेकिन एकाएक नगर पालिका ने उनके मकान को अतिक्रमण बताते हुए ध्वस्त करने की कार्यवाही कर दी। इस मामले में नियमों को परे रखकर न तो नगर पालिका ने संबंधित को कोई नोटिस जारी किया न ही कोई जवाब तलब किया और सीधे बुलडोजर भेजकर आशियाने को उजाड़ दिया। हालात यह हुए कि अग्रवाल के ऑफिस, दुकान और मकान को मनमाने तरीके से नेस्तो नाबूद कर दिया। परिजन रोकने और जवाब तलाशने के फेर में केवल आंसू बहाते घूम रहे है लेकिन उनके यहां हुई तोडफ़ोड़ को लेकर न तो सार्वजनिक निर्माण विभाग जिम्मेदारी ले रहा है और न ही नगर पालिका रावतभाटा के अधिकारी फोन उठाकर कोई जवाब दे रहे है। ऐसे हालातों में परिजन सिवाय आसंू बहाने के कुछ भी नहीं कर पा रहे है।

हाईवे के नाम पर तोड़ा मकान, जिम्मेदार मौन
स्टेट हाईवे बनाने के नाम पर हुई इस तोडफ़ोड को लेकर जानकारी ली तो सामने आया कि रावतभाटा से रामगंज की ओर जाने वाले मार्ग को चौड़ा किया जाना है। इसके लिए साढ़े दस मीटर दोनों तरफ रोड चौड़ी की जानी है। इसे लेकर चिन्हिकरण कर लिया गया है और दो मकानों के बीच में बने विपिन अग्रवाल के मकान को अतिक्रमण बताते हुए तोड़ दिया गया जो सड़क के मध्य से लगभग 17.5 मीटर दूरी पर स्थित है। बड़ी बात यह है कि इस मकान के दाएं-बाएं बने मकान यथावथ है लेकिन सिर्फ इस मकान को तोड़ा गया है अब इस तोडफ़ोड़ को लेकर जिम्मेदार चुप्पी साधे हुए है।

तू भी चुप, मैं भी चुप, बस टूट गया मकान
पाई-पाई जोड़कर आशियाना बनाने वाले विपिन अग्रवाल का टूटा हुआ मकान अब एक अनसुलझी पहेली बनकर रह गया है। सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारी खुद को कार्यकारी एजेन्सी बताकर पल्ला झाड़ रहे है तो नगर पालिका के अधिकारी करेले पर नीम चढ़े वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे है कि उनकी तरफ से तो कोई अभियान ही नहीं चलाया जा रहा है और उपखंड अधिकारी तो अंधों में काने राजा की भूमिका में है जिनका कहना है कि कार्यवाही तो प्रशासन ने की है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर प्रशासन है कौन, क्योंकि उपखंड अधिकारी, अधिशाषी अधिकारी और सार्वजनिक निर्माण विभाग सभी विभाग सभी प्रशासनिक ढांचे का ही हिस्सा है, लेकिन अब इस ढांचे की किस ईंट ने व्यक्तिगत द्वेषता के चलते कमजोर बनते हुए किसी के आशियाने को ढहा दिया। अब ऐसे हालातों में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि सब चुप है, लेकिन मकान तोड़े जा रहे है और जिम्मेदार एक दूसरे पर दोषारोपण कर मामले में पल्ला झाडऩे की कवायद में जुटे है।
पालिका से लेकर एसडीएम तक के बेतुके बयान
इस मामले में जब पीडब्ल्यूडी के अधीक्षण अभियंता हरिसिंह मीणा से पक्ष जानना चाहा तो उन्होनें बताया कि पीडब्ल्यूडी महज कार्यकारी एजेन्सी है और वह डिवाईडर से नाले तक सड़क चौड़े करने का काम कर रही है न की तोडफ़ोड़ का। इस संबंध में विभाग के सहायक अभियंता ने भी इस बात की पुष्टि की और किसी भी तोडफ़ोड़ से इंकार किया, लेकिन जब इस संबंध में नगर पालिका के अधिशाषी अधिकारी सौहेल शेख का पक्ष जाना तो उन्होनें किसी प्रकार के अतिक्रमण तोड़े जाने से इंकार कर दिया। जब उनसे पूछा कि आखिर जब दोनों ओर के मकान छोड़कर बीच का अग्रवाल का मकान किसने तोड़ा तो वे कोई जवाब नहीं दे पाये और अपना मोबाइल वहां मौजूद उपखंड अधिकारी को थमा दिया। उपखंड अधिकारी भी इस मामले में कुछ नहीं बोल पाये और बाद में जब उनसे पूछा कि आखिर बुलडोजर किस एजेन्सी का था तो उन्होंने उसे प्रशासन का बता दिया और कहा कि बुलडोजर उन्होनें मंगवाया है।
अब सवाल यह है कि क्या उपखंड अधिकारी किसी भी मकान को बिना किसी कानूनी कार्यवाही के बुलडोजर मंगवा कर तुड़वा सकते है? इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है। 

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