चित्तौड़गढ़। श्रमण संघीय आचार्य डाॅ. शिव मुनि की आज्ञानुवर्ती उपवर्तीनीशासन चन्द्रिका वीरकान्ता व सुशिष्या डाॅ. अर्पिता ने शांति भवन में प्राणातियात पाप स्थान का विवेन करते हुए कहा कि पाप की आलोचना/ प्रायश्चित करने से पर्वत जैसा पाप राई जैसा हो जाता है। उन्होंने कहा कि जीव दो प्रकार के होते हैं। त्रस जीव और स्थावर जीव। त्रस जीव की हिंसा सूक्ष्म हिंसा है और स्थावर जीव की हिंसा स्थूल हिंसा है। गृहस्थ लोग स्थावर जीव की हिंसा त्यागने में असमर्थ है। सांसारिक कार्यों में स्थावर जीवों की हिंसा साधारण है। प्रायः पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु एवं वनस्पति की हिंसा का प्रसंग आता ही रहता है। अतः वह स्थूल हिंसा का त्याग करता है और स्थावर हिंसा के प्रायश्चित आलोचना से अपने पापों को हल्का बना सकता है। इसीलिए परमात्मा ने प्रतिक्रमण और आलोचना का विधान किया है। गृहस्थ स्थूल हिंसा केन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के त्याग करता है जिससे तीन करण तीन योग से स्थूल हिंसा का परित्याग करता है, परन्तु शरीर रक्षा, परिवार रक्षा, व्यावसायिक कार्यों आदि में स्थूल हिंसा के आगार रख सकते हैं।
भगवान ने फरमाया कि सुई के अग्रभाग पर समा सकने वाली पृथ्वीकाय में जितने जीव मौजूद है वे कदाचित कबूतर के आकार के हो जाये, अपकाय के जीव भैंरे का आकार बना ले अग्नि काय के जीव सरसों जितना और वायुकाय के जीव खसखस जितना आकार बनावें तो भी जम्बू द्वीप में नहीं समा सकते। वनस्पति काय के जीवों की बात ही मत पूछो। सुई के अग्रभाग में समा सके जितने जीव निगोद वनस्पति कार्य में अनन्त जीव विद्यमान है। इसलिए बार-बार मरना पड़ता है, बार-बार जीना पड़ता है, बार-बार माता के उदर में आना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि गर्भपात जैसे जघन्य पाप से नरक गति बंध हो जाता है। यह जानकर की हुई हिंसा है। गृहस्थ प्रत्याख्यान लें तो इस हिंसा व नरक गति से बचा जा सकता है। खुदाई, माल ढुलाई, मजदूर, रिक्शा चालक, डोली उठाने वाले, भवन निर्माण मजदूरों से काम लेना ऐसे कई कार्य है जो पचेन्द्रिय हिंसा में गिने जाते हैं पर एक शब्द साॅरी, मिच्छा मिदुक्कडम् कह कर प्राश्यिचत/आलोचना नहीं करते हैं तो पाप आता ही है। व्यावहारिक जीवन में चमड़े का उपयोग, लिपिस्टिक, रेशम आदि का उपयोग अप्रत्यक्ष हिंसा है। अपनी सुन्दरता के लिए हिंसा पाप है। जितना विलासिता पूर्ण जीवन उतना ज्यादा आरम्भ समारम्भ, उतना ज्यादा पाप। जब दर्द देंगे नहीं तो दर्द होगा नहीं और दर्द देंगे तो दर्द होगा ही। अनुपयोगी गाय को कसाई खाने भेज दिया तो आपके बच्चे भी आपको धक्का देकर घर बाहर कर सकते हैं। आलोचना, प्रायश्चित क्षमायाचना से पाप घटाया जा सकता है। भरत चक्रवर्ती भी मोक्ष में गये, राजकार्य में पाप होते ही है। पर पल-पल का विवेक यतना का उपयोग करूणा, दया, मैत्रीभाव, क्षमायाचना और मैत्रीभाव से प्राणातिपात के पाप को कम कर सकते हैं। कवि ने कहा है कि दयाधर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान, तुलसी दया ना छोड़िये, जब तक घट में प्राण।
संघ अध्यक्ष लक्ष्मीलाल चण्डालिया ने बताया कि प्रति रविवार को दोपहर 3 बजे बाल संस्कार शिविर प्रावचन के पश्चात् जैन आध्यात्मिक रैकी व प्रवचन के दौरान भोजन का अमृत बनाने की कला सिखाई जायेगी जिसमें भोजन सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण के उपाय बताये जायेंगे।
नवकार जाप प्रभारी नरेश भड़कत्या ने बताया कि रविवार 17 जुलाई के 12 घंटे के अखण्ड जाप प्रातः 8 बजे से रात्रि 8 बजे तक वल्लभकुमार, नरेश कुमार बोहरा के शास्त्रीनगर स्थित आवास पर रहेंगे।
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