चित्तौड़गढ़, (सलमान)। श्रमण संघीय आचार्य सम्राट डाॅ.शिवमुनि की आज्ञानुवर्ती उपप्रवर्तिनी वीरकान्ता की सुशिष्या डाॅ. अर्पिता ने प्रवचन के माध्यम से अठारह पाप स्थानों में दूसरे पाप मृषावाद का विवेचन करते हुए बताया कि परमात्मा महावीर ने भगवती सूत्र में इस विषय में विस्तार से बताया। इसे जानना, समझना और व्यवहार में लाना अपने हाथ में है। उन्होंने कहा कि तीर तलवार का घाव तो भर जाता है, कल का खाया हुआ याद नहीं रहता परन्तु पूर्व में कभी की हुई कटोक्ति हर समय याद रहती है। इसलिए मिश्री लिपटी मीठी मीठी वाणी का उपयोग करें। यह वशीकरण मंत्र है। असत्य भाषण का परिणाम अतिकटुक है। भगवान ने फरमाया की असत्य भाषण भयंकर पाप है। चार कारणों से व्यक्ति असत्य का सेवन करता है - क्रोध, भय, लोभ और हास्य। उन्होंने कहा कि छः कारणों से व्यक्ति झुठ बोलता है, क्रोध में, मान हेतु, माया, लोभ, भय और हास्य में। असत्य भाषण किसी भी कारण हो, त्याज्य है। उन्होंने कहा कि जो सत्य पर पीड़ाकारी हो वह नहीं बोलना चाहिये। सावद्य सत्य भी नहीं बोलना चाहिये। सोच समझ कर बोलना चाहिये अन्यथा मौन रहना सबसे उत्तम है। मौन एक साधना है और बोलना एक कला है। कब, किससे, क्या और कैसे बोलना? यह विवेक आवश्यक है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में मोबाइल असत्य भाषण का नया रूप सामने आया - निकल गया हूँ, घर पर नहीं हूँ, पहुँच रहा आदि उक्तियाँ असत्य होते हुए भी प्रायः प्रयोग में लाई जा रही है। फारवर्डेड मेसेज में अर्द्धसत्य, सूचनाएँ वायरल हो जाती है जिससे अनेक अनर्थपूर्ण परिणाम दृष्टि गोचर होते हैं। सत्य बातों को वायरल करें। भाषा के पुद्गल अत्यधिक तीव्र गति से गमन करते हैं और क्षणभर में सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हो जाते हैं। एक असत्य कई पाप करा बैठता है। इसलिए वाणी को तौल कर बोलना चाहिये। इसकी मार बहुत बुरी है। दो दिलों के मध्य दीवार खड़ी करने में विलम्ब नहीं करती। द्रोपदी के एक ही वाक्य ने अठारह अक्षोहिणी सेना का घात करा दिया। यह वाक्य सत्य था पर कटु और अप्रिय सत्य था। महाभारत में आता है कि सत्यवादी युधिष्ठर का रथ जमीन से ऊपर चलता था परन्तु अश्वत्थामा के मरने के मिश्र मिथ्या भाषण के कारण उनका रथ भी नीचा हो गया। उन्होंने कहा कि गृहस्थ के लिए मृषावाद असत्यवदन से सर्वथा मुक्त होना कठिन है। कई झूठ सहज ही अनायास ही बोल देते हैं इसलिए गृहस्थ को स्थूल मृषावाद अर्थात् वर्ड मृषावाद से निवृत रहना चाहिये। शास्त्रों के अनुसार पाँच बड़े मृषावाद है - कन्नालीए - कन्या सम्बन्धी झूठ, अनेक प्रकार के झगड़े खड़े कर देता है। सन्ताप और क्लेश के कारण दम्पति का जीवन दूभर हो जाता है। कुछ कुछ में तो आत्मघात की नौबत भी आ जाती है। दूसरा गवालीए - गौर सम्बन्धी असत्य भाषण नहीं करे। इसके कारण खरीददार एवं पशु को भी दुःख भोगना पड़ता है। झगड़े की भी नौबत आ जाती है। तीसरा भूम्यलीम - अर्थात् जमीन सम्बन्धी झूठ से भी कई झगड़े हो जाते हैं। श्रावक का विश्वास भी उठ जाता है। इस प्रकार का झूठ अनर्थकारी है। चैथा थापणा मोसो - स्थापना मृष्णा - किसी की धरोहर को दबाने के लिए बोले गये झूठे से मरणान्तक कष्ट तथा हृदयाघात तक हो जाते हैं। धरोहर दबाने वाले उजले भव में दरिद्र कंगाल और निपूते होते हैं। नरक तथा तिर्यचं गति में जाते हैं। पाँचवा - झूठी साक्षी देना अनर्थकारी हैं। सद्गृहस्थ को इन पाँच बड़े पापों से बचना चाहिये। संघ अध्यक्ष लक्ष्मीलाल चण्डालिया ने बताया कि बड़ी तपस्या के क्रम में आज मुकेश सुकलेचा ने सजोड़े 7 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। बाल संस्कार शिविर का सफल आयोजन धार्मिक आयोजन समिति के कनक मेहता ने बताया कि प्रति रविवार छोटे बालकों में धार्मिक संस्कार पनपाने की दृष्टि से रविवार सायं को आयोजित संस्कार शिविर में 50 बच्चों ने भाग लिया।
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