देहदान के प्रति जिले में दिखा बडा रुझान, एक साथ परिजनों ने की देहदान की घोषणा

चित्तौड़गढ़। पिछले कुछ वर्षो मे सामाजिक संस्थाओं के प्रयासों से मेडिकल छात्रों को बॉडी पर प्रैक्टिकल करने हेतु मृत देह प्राप्त होने लगी है गत 10 जुलाई को एक साथ 4 परिजनों ने देहदान की घोषणा की, इसका उदाहरण है। चित्तौड़गढ़ निवासी अरविन्द नागोरी उनकी पत्नी रेखा नागोरी इनके सास ससुर पारस देवी एवं सुगन चंद मुणोत ने जिला कलेक्टर अरविन्द पोसवाल के समक्ष देहदान की घोषणा की। इनके साथ ही 2 अन्य दम्पती प्रकाश पोखरना एवं लाड्कंवर पोखरना, रतनलाल एवं चंदा स्वणर्णकार ने भी देहदान की घोषणा की।
एक किशारे की कलाई जोड़ने से पहले सर्जन ने मेडिकल कॉलेज में डेड बॉडी पर प्रैक्टिकल कर देखा था, वे इसके बाद किशोर को पूरा हाथ देने में कामयाब हुए, यह तभी संभव हुआ। किसी महादानवीर ने अपनी देह मेडिकल कॉलेज को दान की। चिकित्सा जगत के लिए मृतदेह अमूल्य है, सिर्फ जनरल पढ़ाई लिखाई ही नहीं, आगे के शोध और जटिल ऑपरेशन में दिग्गज सर्जंन के लिए भी यह देह रोशनी का काम कर कई जिंदगियां बचाती है।
भीलवाड़ा में मेडिकल कॉलेज खुलने के बाद अब तक इसके एनोटॉमी विभाग को कुछ बॉडी देहदान के रूप में मिली हैं। इसका सीधा कारण जागरूकता की कमी माना जा सकता है। देहदान को बढ़ावा देने के लिए जब शहर के निजी अस्पतालों में जाकर देहदान की प्रक्रिया के बारे में जानने की कोशिश की, तो अधिकतर निजी अस्पतालों में न तो देहदान के बैनर, पोस्टर लगे मिले न ही वहां देहदान के बारे में कोई कर्मचारी स्पष्ट बता पाया। यदि सरकारी व निजी अस्पताल मिलकर देहदान को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाएं, तो लाखों का भला हो सकता है। क्योंकि एक बॉडी से मेडिकल कॉलेज के 10 से 12 छात्रों को पढ़ाया जाता है। 
ऐसे भी उदाहरण सामने आएं है कि डॉक्टरों ने बॉडी पर प्रैक्टिकल कर जटिल ऑपरेशन को भी सफल कर दिखाया, इससे अब कई रोगियों की जान बचने लगी है। इसलिए रक्तदान, नेत्रदान की तरह ही देहदान को भी बढ़ावा देना होगा। अनक्लेम बॉडीज अस्पताल को देने की प्रक्रिया है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया पूरी होते होते यह बॉडीज खराब हो जाती हैं और विद्यार्थियों के काम की नहीं रहती। 
देहदान के प्रति जागरूकता लाने के लिए सरकार के स्तर पर प्रयास हुए हैं, लेकिन अभी जागरूकता की काफी कमी है। 
देहदान ही बनाता है बेहतर डॉक्टर मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टर बनने वाला प्रत्येक छात्र मानव शरीर को अंदर से देखकर ही प्रैक्टिकल सीखते हैं। मेडिकल ऑपरेशन में जब भी कोई नई तकनीक आती हैं, तो उसे सीखने और प्रैक्टिकल कर देखने के लिए कडैवेरिक वर्कशॉप (मानव शरीर पर प्रयोग) के लिए भी बॉडी का उपयोग किया जाता है।
एंडोस्कोपी करने से पहले ईएनटी सर्जन और प्लास्टिक सर्जरी के लिए  प्रयोग जानवरों की बॉडी पर होते हैं प्रेक्टिकल मानव शरीर न मिलने की स्थिति में कई डॉक्टर जटिल ऑपरेशन करने से पहले जानवरों के मृत शरीर पर भी प्रैक्टिकल करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं। जब डॉक्टरों ने मुंबई और दिल्ली जाकर जानवरों के शरीर पर प्रयोग किए, उसके बाद जटिल ऑपरेशनों को पूरा किया। 
देहदान का इतिहास एक शताब्दी पहले मानव शरीर की अस्पतालों में उपलब्धता इतनी कम थी कि 1800 के आसपास बॉडीज को अस्पतालों में बेचने के लिए एक व्यक्ति ने 15 मर्डर कर दिए थे। उस समय मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ने के लिए बॉडी नहीं मिल पाती थी। बॉडी डोनेशन को लेकर 1832 अमेरिका में पहली बार एक्ट बना था, उसमें बताया था अनक्लेम बॉडी अस्पताल को स्टूडेंट्स की पढ़ाई के लिए दे दी जाए। अनक्लेम बॉडी को अस्पताल को सौंपने के लिए राजस्थान में एक्ट 1986 में बना था। 
शरीर के मृत होने पर तीन घंटे में आंख के कॉर्निया का दान हो सकता है। औसतन तीन घंटे के अंदर ही बॉडी डोनेशन किया जा सकता है अन्यथा बॉडी को डिप फ्रिजर में रखना होता है।

ऐसे कर सकते हैं देहदान 

यदि कोई देहदान करना चाहता है तो उसे भिलवाडा  मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल के एनोटॉमी विभागाध्यक्ष के नाम लिखित में आवेदन करना होगा।  एनोटॉमी विभाग की ओर से दो पेज का फार्म निशुल्क दिया जाएगा फार्म में देहदान करने वाले व्यक्ति का नाम, पता, उत्तराधिकारी का नाम, दो विटनेस जिसमें या तो पत्नी या पड़ोसियों हो सकते हैं। देहदान करने वाले व्यक्ति को दो पासपोर्ट फोटो देने होंगे, जिसमें से एक फार्म पर लगाया जाएगा दूसरा रजिस्ट्रेशन कार्ड पर लगेगा। 
फार्म एनोटॉमी विभाग को देने के बाद विभाग की ओर से तुरंत एक रजिस्ट्रेशन कार्ड दिया जाएगा, जिस पर रजिस्ट्रेशन नंबर व नाम अंकित होगा, उस पर देहदान करने की घोषणा करने वाले व्यक्ति का फोटो भी लगा होगा।

 चित्तौड़गढ़ में फिलहाल बॉडी डोनेशन और कॉर्निया डोनेशन की सुविधा महावीर इंटरनेशनल व़ आचार्य तुलसी ब्ल्ड  फाउन्डेरशन द्वारा की जा रही है। महावीर इन्टरनेशनल स्थापना दिवस पर हर वर्ष देहदान करने वाले परिवारों को बुलाकर सम्मानित करता है। 

चित्तौड़गढ़ निवासी 54 वर्ष के यशपाल बापना ने देहदान करने का निर्णय कर लिया किन्तु समस्त औपाचारिकताऐं पूर्ण नहीं कर पाए एवं अकस्मात 2 माह पश्चात ही उनका निधन हो गया। परिवारजनों ने उनकी अंतीम इच्छा अनुसार देहदान किया उनकी धर्म पत्नी पुष्पा बापना ने कहां कि मरने के बाद इंसान की देह तो मिट्टी हो जाती है। यदि यह मिट्टी भी किसी काम आए, तो यह सच्ची समाजसेवा है। अंतिम इच्छा को पूरा कर हम सब परिवार जनों को भी गर्व महसूस हुआ है। देहदान करने से यह शरीर किसी के काम आए और मेडिकल कॉलेज के बच्चे इस देह से कुछ सीखेंगे। देहदान से कई जिंदगियों का भला हो सकेगा और आप लोगों को भी इस कार्य से शांति मिलेगी।

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