चित्तौड़गढ़
। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय कल्याण लोक जावदा निंबाहेड़ा चितौड़गढ़ राजस्थान योग विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष सहायक आचार्य जसबीर ने बताया वर्तमान समय में कोरोना जैसी बीमारी सबसे पहले हमारे हृदय तंत्र को पकड़ती है और पाचन तंत्र को विकृत करती हैं, ऐसे समय में हम उष्ट्रासन के अभ्यास से हृदय को मजबूत आत्मविश्वास दृढ़ बना सकते हैं, नेत्र संबंधी विकार, सर्वाइकल संबंधी आदि रोगियों के अत्यंत गुणकारी है। इसके साथ-साथ हम वज्रासन प्रथम स्थिति का अभ्यास कर सकते हैं जिसके करने से पाचन तंत्र मजबूत होता हैं, मन एकाग्र होता, घुटने मजबूत होते हैं, इसमें मेरुरज्जू सीधी रहती। जिससे रक्त संचार भी सुचारू रूप से होता हैं।कैसे करें उष्ट्रासन : सबसे पहले आप प्रथम स्थिति वज्रासन बैठ जाएंगे, पैरों के पंजे फर्श पर स्पर्श रहेंगे, उसके बाद आप घुटने के बल खड़े होंगे, घुटनों के बीच में एक फिट की दूरी होनी चाहिए। जिससे आप आसानी से अपना संतुलन बना सकें, उसके बाद आप श्वांस भरते हुए आप द्वितीय स्थिति बनाएंगे अर्द्ध उष्ट्रासन की, तत्पश्चात आप धीरे-धीरे अपने शरीर की स्थिति के अनुसार पहले बायां हाथ बाएं पैर की एड़ी के ऊपर रखेंगे, फिर दायां हाथ दाएं पैर की एड़ी पर रखेंगे, पीछे की ओर झुकें और ध्यान रहे कि पीछे झुकते समय गर्दन को झटका न लगे। शरीर का भार भुजाओं और पैरों पर समान रूप से हो, श्वांस धीरे-धीरे छोड़े और लें।उष्ट्रासन तीसरी स्थिति इस आसन के पूर्ण होने के बाद इसकी आकृति ऊंट के समान प्रतीति होती है। इस आसन का अभ्यास दो से तीन बार कर सकते हैं। इस आसन के करने के पश्चात् हमें शशांकासन चतुर्थ स्थिति का अभ्यास करना चाहिए। इसके अभ्यास करने से मन शांत होता है, क्रोध एवम् तनाव दूर होता हैं, जो व्यक्ति उष्ट्रासन नहीं कर सकते वो अर्द्ध उष्ट्रासन कर सकते हैं।
उष्ट्रासन के लाभ : हृदय एवम् आत्मविश्वास दृढ़ होता है, पेट की चर्बी कम, मधुमेह के रोगी के लिए उत्तम है। इन्सुलिन के स्राव में मदद मिलती हैं, नेत्र विकार दूर होते हैं, सर्वाइकल एवं गर्दन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।
सावधानी : घुटने के दर्द से पीड़ित व्यक्ति ना करें, उच्चरक्तचाप वाले योग्य शिक्षक की देखरेख में करें। माइग्रेन से पीड़ित रोगी न करें।
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