सालों से चली आ रही गाये भड़काने की अनूठी परंपरा, अगले साल जमाने की भी होती हैं भविष्यवाणी

चित्तौड़गढ़। जिले के आकोला कस्बे में गोवर्धन पूजा पर्व पर आज भी सैंकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा चली आ रही हैं। आकोला कस्बे में गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों को भड़काने की अनूठी परंपरा हैं इसके आधार पर आने वाले साल के जमाने का अनुमान लगाया जाता है। नए साल के जमाने का अनुमान लगाने वाली अनूठी परंपरा के अनुसार आज रविवार को आकोला में आयोजित खेख़रा पर्व पर यह भविष्यवाणी रही कि आने वाला साल न ज्यादा अच्छा व न ही ज्यादा खराब रहेगा।
आकोला कस्बे को दो भागों में विभक्त करने वाली बेड़च नदी के तट पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में अखाड़ा  महन्त निर्मलदास महाराज, सरपंच तारा मालीवाल, 
समाज व गायों के  सेवक शंकर नाथ ,गायों के ग्वाल, मांगीलाल भील, नारायण भील मौजूद रहे। इस अवसर पर श्रीकृष्ण महावीर गौशाला के चोपट पर गोबर से बनाया गोवर्धन पूजा अर्चना में पुरुष व महिलाए मौजूद थी।
 ग्राम आकोला के सभी समाज के पंच पटेलों की उपस्थिति में आयोजित खेख़रा पर्व पर इस बार नीले रंग की गाय सबसे पहले भड़की। इससे पंच पटेलों ने ये अनुमान लगाया गया कि आने वाला साल न ज्यादा बढ़िया और नहीं ज्यादा खराब रहेगा। यहां पर सफेद रंग की गाय के पहले भड़कने पर सुकाल, काले रंग की गाय के भड़कने पर अकाल तथा नीले रंग की गाय के भड़कने पर आने वाले साल न ज्यादा बढ़िया और ना ही ज्यादा खराब रहने का अनुमान लगाया जाता है।
पशुपालक गायों को सजा कर एवं पैरों में घुंगरू बांधकर लाते हैं।
पशुपालक अपनी गायों को अपने घरों में नहला कर विभिन्न तरह के रंगों की छापों से सजा धजा कर उनके गले में व पैरों में घुंगरू बांध कर खेख़रा स्थल पर लाते है।
आकोला कस्बें के बेड़च नदी के किनारे निर्धारित स्थान पर गांव के प्रमुख पंच पटेलों की उपस्थिति में ग्रामीण अपनी गायों को सजा धजा कर लाते हैं। यहां पूजा अर्चना के बाद प्रतीकात्मक रूप से एक गाय की पूजा की जाती है। इसके बाद ग्वाला खेख़रा भड़काने के लिए बांस पर बनी हुई चमड़े की कुप्पी व गेड़ी को हाथ में लेकर गायों के सामने कुप्पी को करता है। सबसे पहले भड़कने वाली गाय को ग्वाला दौड़ता हुआ गाय मालिक के घर तक ले जाता है। 
वहां रीति-रिवाज व परम्परा के अनुसार ग्वाले को भेंट स्वरूप राशि, धान व साफा बंधवा कर विदा किया जाता है।
खेख़रा पर्व पर गाय को भड़काने वाले ग्वाल ने बताया कि सैकड़ों वर्षों पुरानी उक्त परंपरा में जिस गेड़ी से गाय को भड़काया जाता है वह करीब 104 वर्ष पुरानी है तथा उसका नाम भानानाथ गेड़ी है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ